-पुस्तक आदर्श भ्रातृ-प्रेम
-लेखक श्री जयदयाल गोयन्दका जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 98
-मूल्य 10/-
रामायणमें आदर्श भ्रातृ प्रेम नामक यह निबन्ध पुस्तकरूपमें पाठकोंके सामने उपस्थित करते हुए हमें बड़ी प्रसन्नता हो रही है । रामायण केवल इतिहास या काव्यग्रन्थ ही नहीं है वह मानव जीवनको सुव्यवस्थित कल्याण मार्गपर सदा अग्रसर करते रहनेके लिये एक महान् पथप्रदर्शक भी है । रामायणमें हमें मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामचन्द्रजीके यशोमय दिव्य शरीरकी प्रत्यक्ष झाँकी मिलती है । रामायण केवल हिंदू संस्कृतिका ही नहीं, मानव संस्कृतिका भी प्राण है । यदि रामायणके ही आदर्शोपर मानव जीवनका संगठन और संचालन किया जाय तो वह दिन दूर नहीं कि सर्वत्र रामराज्यके समान सुख शान्तिका स्रोत बहने लगे ।
प्रस्तुत पुस्तकमें श्रीवाल्मीकि, श्रीअध्यात्म और श्रीतुलसीकृत रामायणके ही आधारपर श्रीरामचन्द्र, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न इन चारों भाइयोंके पारस्परिक प्रेम और भक्तिका बहुत ही मनोहर चित्रण किया गया है । आजकल दैहिक स्वार्थ और तुच्छ विषय सुखकी मृग तृष्णामें फँसकर विवेकशून्य हो जानेके कारण जो बहुधा भाई भाईमें विद्वेषकी अग्रि धंधकती दिखायी देती है उसको अनवरत प्रेम वारिकी वर्षासे सदाके लिये बुझा देनेमें यह पुस्तक बहुत ही सहायक हो सकती है । इसकी भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है । पढ़ते पढ़ते नेत्रोंमें प्रेमके आँसू उमड़ आते हैं ।
इस पुस्तककी उपादेयताके विषयमें इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि यह परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाद्वारा रचित तत्त्व चिन्तामणि नामक पुस्तकके द्वितीय भागकी एक किरण है । इसके प्रकाशमें रहनेपर भ्रातृ विद्वेषरूपी सर्पसे डँसे जानेका भय सर्वथा दूर हो सकता है । अनेकों प्रेमीजनोंके अनुरोधसे सर्वसाधारणको अत्यन्त सुलभ करनेके लिये यह निबन्ध अलग पुस्तकाकारमें प्रकाशित किया गया है । प्रेमी पाठकोंको इसे पढ़कर लाभ उठाना चाहिये ।
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