-पुस्तक प्रेम-दर्शन
-लेखक श्री हनुमानप्रसाद पोदार जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 176
-मूल्य 20/-
प्रेम है द्वार, प्रेम है मार्ग और प्रेम ही है प्राप्ति। मनुष्य की भाषा
में ‘प्रेम’ से ज्यादा बहुमूल्य और कोई शब्द नहीं। लेकिन बहुत कम
सौभाग्यशाली लोग हैं जो प्रेम से परिचित हो पाते हैं।
इस पुस्तक में भक्ति-दर्शन के प्रधान आचार्य देवर्षि नारद-कृत
नारद-भक्तिसूत्र की श्री हनुमानप्रसाद जी पोद्दार द्वारा सर्वजनोपयोगी,
बोधगम्य तथा सरल व्याख्या की गयी है।
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