27 Aug 2021

उद्धार कैसे हो परमार्थ पत्रावली भाग 1

 


-पुस्तक           उद्धार कैसे हो परमार्थ पत्रावली भाग 1

-लेखक          श्री जयदयाल गोयन्दका जी 

-प्रकाशक       गीताप्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या       112

-मूल्य               10/-

 

 

विवाह आदि सांसारिक काम नदी के प्रवाह की तरह है । जो कोई भगवत-चरणरुपी नौका पर नामरुपी रस्से को पकड़कर ध्यान द्वारा आरुढ़ हो जाता है वही बच सकता है। जो नदी के प्रवाह मेँ बह जाता है उसकी बड़ी बुरी दशा होती है।

संसारके पदार्थ इच्छा करनेपर नहीं मिलते, केवल भगवान ही ऐसे हैं जो इच्छा करनेसे मिलते हैं। तीव्र इच्छा हो जाय तो और किसी साधनकी जरूरत नहीं है। 
भगवत-प्रेम में पागल हुए भक्‍त की दशा का वर्णन करते हैं- कभी तो भगवत-चितंन से उसका हृदय क्षुब्‍ध-सा हो उठता है और भगवान वियोगजन्‍य दु:ख के स्‍मरण से वह रोने लगता है। कभी भगवत-चिं‍तन से प्रसन्‍न होकर उनके रूप-सुधाका पान करते-करते हंसने लगता है, कभी जोरों से भगवन्‍नामों का और गुणों का गान करने लगता है। कभी उत्‍कण्‍ठा के सहित हुंकार मारने लगता है, कभी निर्लज्‍ज होकर नृत्‍य करने लगता है और कभी-कभी वह ईश्‍वर-चिंतन में अत्‍यंत ही लवलीन होने पर तन्‍मय होकर अपने-आप ही भगवान की लीलाओं का अनुकरण करने लगता है।


 

 

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